भेष बारह पंथ गोरख डिब्बी ट्रस्ट सभा
ज्वाला देवी गोरख डिब्बी ज्वालामुखी, कंगडा, हिमाचल प्रदेश
Friday 8 August 2014
Wednesday 6 August 2014
श्री गोरक्ष चालीसा
श्री गोरक्ष चालीसा
हाथ जोड़ विनती करू शारद नाम आधार ॥
जय जय जय गोरक्ष अविनाशी, कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी ।
जय जय जय गोरक्ष गुणज्ञानी, इच्छा रूप योगी वरदानी ॥
अलख निरंजन तुम्हरो नामा, सदा करो भगतन हित कामा ।
नाम तुम्हारा जो कोई गावे, जनम जनम के दुःख नशावे ॥
जो कोई गोरक्ष नाम सुनावे, भूत पिशाच निकट नहीं आवे ।
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे, रूप तुम्हारा लख्या ना जावे ॥
निराकार तुम हो निर्वाणी, महिमा तुम्हारी वेद बखानी ।
घट घट के तुम अन्तर्यामी, सिद्ध चौरासी करे प्रणामी ॥
भस्म अंग गले नाद विराजे, जटा शीश अति सुंदर साजे ।
तुम बिन देव और नहीं दुजा, देव मुनि जन करते पूजा ॥
चिदानन्द सन्तन हितकारी, मंगल भवन अमंगल हारी ।
पूर्ण ब्रह्म सकल घाट घट वासी, गोरक्षनाथ सकल प्रकाशी ॥
गोरक्ष गोरक्ष जो कोई ध्यावे, ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ।
शंकर रूप धर डमरू बाजे, कानन कुण्डल सुन्दर साजे ॥
नित्यानंद है नाम तुम्हारा, असुर मार भगतन रखवारा।
अति विशाल है रूप तुम्हारा, सुर नर मुनि जान पावे न पारा ॥
दिन बंधू दीनन हितकारी, हरो पाप हम शरण तुम्हारी ।
योग युक्ति में हो प्रकाशा, सदा करो सन्तन तन वासा ॥
प्रात:काल ले नाम तुम्हारा, सिद्धि बढे और योग प्रचारा।
हट हट हट गोरक्ष हठीले, मार मार बैरी के कीले ॥
चल चल चल गोरक्ष विकराला, दुश्मन मार करो बेहाला ।
जय जय जय गोरक्ष अविनाशी, अपने जन की हरो चौरासी ॥
अचल अगम है गोरक्ष योगी, सिद्धि देवो हरो रस भोगी ।
काटो मार्ग यम की तुम आई, तुम बिन मेरो कौन सहाई ॥
अजर अमर है तुम्हारी देहा,तुम अविनाशी सनकादिक सब जोरहि नेहा ।
कोटिन रवि सुम तेज तुम्हारा, है प्रसिध्द जगत उजियारा ॥
योगी लखे तुम्हारी माया, पार ब्रह्म से ध्यान लगाया ।
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे, अष्ट सिद्धि नव निदधि घर पावे ॥
शिव गोरक्ष है नाम तुम्हारा, पापी दुष्ट अधम को तारा ।
अगम अगोचर निर्भय नाथा, सदा रहो सन्तन के साथा ॥
शंकर रूप अवतार तुम्हारा, गोपीचंद भरथरी को तारा ।
सुन लीजो गुरु अरज हमारी, कृपा सिंधु योगी ब्रह्मचारी ॥
पूर्ण आस दास की कीजे, सेवक जान ज्ञान को दीजे ।
पतित पवन अधम अधारा तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ॥
अलख निरंजन नाम तुम्हारा, अगम पंथ जिन योग प्रचारा ।
जय जय जय गोरक्ष भगवान, सदा करो सन्तन कल्याणा ॥
जय जय जय गोरक्ष अविनाशी, सेवा करे सिद्ध चौरासी ।
जो पढ़े गोरक्ष चालीसा, होय सिद्ध साक्षी जगदीशा ॥
बारह पाठ पढ़े नित जोहि, मनोकामना पूर्ण होइ ।
और श्रद्धा से रोट चढ़ावे, हाथ जोड़कर ध्यान लगावे ॥
सुने सुनावे प्रेम वश, पूजे अपने हाथ ।
मन इच्छा सब कामना, पुरे गोरक्षनाथ ॥
अगम अगोचर नाथ तुम, पर ब्रह्म अवतार ।
कानन कुण्डल सिर जटा, अंग विभूति अपार ॥
सिद्ध पुरुष योगेश्वरो, दो हमको उपदेश ।
हर समय सेवा करू, सुबह शाम आदेश ॥
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